NEW DELHI : तो क्या मुंबई की ठाकरे सरकार बीजेपी की गुगली में फंसने से बच गयी? लगता तो यही है क्योंकि ठीक इसी तरह का एक आंदोलन दिल्ली की रामलीला मैदान में अन्ना की अगुवाई में चला था। उस वक्त केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी और उसने आंदोलन को आगे बढ़ने दिया। उस आंदोलन के बाद पूरे देश में एंटी कांग्रेस लहर बन गयी और नतीजा सभी के सामने हैं। बीजेपी ने बढ़त बनाई और देश को कुमार विश्वास, अरविंद केजरीवाल, शाजिया इल्मी और राम देव जैसे चेहरे मिले।
एक बार फिर सुशांत राजपूत की आत्महत्या ने एंटी ठाकरे सरकार का महौल बनाया। रिया की गिरफ्तारी के बाद कंगना का पर्दापण हुआ और अब करणी सेना, आठवाले और अयोध्या के संतो का कंगना के समर्थन में एलान करने से महौल वैसा ही बन रहा है जैसा अन्ना आंदोलन के समय दिल्ली में बना था। केन्द्र सरकार जबतक एक्शन में आई तबतक बहुत देर हो चुकी थी।
ठीक उसी तर्ज पर ठाकरे सरकार संभल कर आगे बड़ने की कोशिश की। सीएम उद्धव ठाकरे ने इस निर्णय को लेने में देरी कर दी कि इस आंदोलन से लड़ना है या फिर डरना है। 15 दिन पहले यह तय किया गया कि इससे लड़ना है और उसके बाद स्थितियां बदलनी शुरू हुई। कंगना के आफिस पर बुलडोर चला और रिया को पूरी कानूनी मदद मुहैया कराई गयी।
अब सवाल यह उठता है कि सरकार का साथ दे रही एनसीपी का क्या रूख रहेगा। क्योंकि एनसीपी की तरफ से कंगना के खिलाफ कोई बायान नहीं आया। क्या इस पूरी कार्रवाई में शरद पवार को विश्वास में लिया गया है।