JAIPUR : क्या सुबह का भूला शाम का घर वापस लौट आएगा। क्या गहलोत बहुमत सिद्ध कर पाएंगे या फिर मध्य प्रदेश की पाटकथा दोहराई जाएगी। या फिर शरद पवार की तरह राजस्थान में अशोक गहलोत कोई मास्टर स्ट्रोक चल कर सबकुछ मैनेज कर लेंगे। यह वह सवाल है जो इस वक्त देश की सियासत में चर्चा का विषय है।
सवाल गहलोत का नहीं है सवाल सचिन पायलट का है। सचिन पायल के लिए अभी सियासत में लंबा सफर तय करना है। अशोक गहलोत लगभग अपना सक्रिय सियासी जीवन जी चुके हैं और बतौर सीएम यह उनकी आखिरी पारी है यह बात वह स्वंय भी कह चुके हैं। ऐसे में यदि सचिन पायलट ने उपयुक्त फैसला नहीं लिया तो यह उनके सियासी कैरियर के लिए बहुत ज्यादा मायनी रखेगा।
अभी तक के क्रम में अशोक गहलोत लीड लेते हुए दिखाई दे रहे हैं। वह न सिर्फ अपने विधाकयों को अपने साथ रख पाने में सफल् हुए हैं बल्कि तमाम दुश्वारियों के बाद सदन में बहुत साबित करने का रास्त भी खोल पाने में कामयाब हुए है। राजस्थान के गवर्नर कलराज मिश्रा ने 14 अगस्त को सदन में बहुत साबित करने का मौका दिया है। राज्य की कांग्रेस सरकार ने हालांकि 31 जुलाई को विशेष सत्र बुलाने की अनुमति मांगी थी, ताकि वह विश्वास मत हासिल कर सके। मुख्यमंत्री गहलोत विशेष सत्र बुलाने की अनुमति के लिए राज्यपाल को तीन बार पत्र लिख चुके थे।