LUCKNOW : कवि सम्मेलन हो या फिर होली बारात या फिर किसी भी व्यक्ति की क्षेत्रीय समस्या। बाबू जी सभी जगह मौजूद रहते थे और सभी के बीच बहुत जल्दी घुल मिल जाते थे। छोटो को प्यार और बुर्जुगों को आदर तो कोई बाबू जी लाल जी टंडन से सीखे। चौक के एक छोटे से मोहल्ले सोंधी टोले से शुरू हुआ लाल जी टंडर का राजनीतिक सफर शिखर पर पहुंचा और जब उन्होंने अंतिम सांस ली तो बतौर मध्य प्रदेश के राज्यपाल के तौर पर।
उन्होंने नफे—नुकसान की राजनीति कभी नहीं की। हमेशा मुददों की राजनीति के जरिये अपनी मौजूदगी का अहसास कराया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई यदि किसी व्यक्ति् पर विश्वास करते थे तो वह लाल जी टंडन ही थी। वह जब भी लखनऊ से चुनाव लड़े तो नामंकन करने आये और फिर विजयी जुलूस में शामिल होने। एक कुशल राजनीतक योद्धा के तौर पर लालजी टंडन ने अंगद की पांव की तरह जहां हाथ रख दिया तो फिर जीत पक्की। बसपा सुप्रीमो मायावती लालजी टंडन के हाथ पर रांखी बांधती थी।
आज लालजी टंडन हमारे बीच नहीं है। हैं तो बस उनकी यांदे। कई दिनों से बीमार चल रहे बाबू जी लखनऊ के मेदांता हास्पिटल में एडमिट थे। उनके बेटे गोपाल जी टंडन जोकि लखनऊ उत्तर से विधायक हैं और योगी सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर के पद पर काम कर रहे हैं।